हिंदुओं की प्राचीन और पवित्र सात नागरियों में एक – पुरी, उड़ीसा राज्य के समुद्री तट बसा है। भगवान जगन्नाथ जी का मंदिर विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। भारत के पूरब में बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छौर पर बसी पवित्र सुंदर नागरी – पुरी, उड़ीसा की राजधानी भूवनेश्वर से थोड़ी दूर पर है। आज का उड़ीसा प्राचीन काल में उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था। यहाँ पर देश की प्रमुख समृद्ध बंदरगाहें थी, जहां से जावा, सुमात्रा, इन्डोनेशिया, थायलैंड और अन्य कई देशों का इन्हीं बन्दरगाहों के रास्ते व्यापार हुआ करता था। पुरी नागरी को पुराणों में धरती का वैकुंठ कहा गया है। यह भगवान विष्णु जी के चार धामों में से एक है। इसे श्रीक्षेत्र, शक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरी और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। ब्रह्म और स्कन्द पुराण के अनुसार यहाँ भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमधाव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। सबर जनजाति के देवता होने के कारण यहां भगवान जगन्नाथ जी का रूप कबीलाई देवताओं की तरह ही है। ज्येष्ठ पूर्णिमा से आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जनजाति के सभी वर्ग दैतपति श्री जगन्नाथ जी की सारी रीतियाँ करते हैं। आदिकाल से ये मन्यता चली आ रही है कि भगवान विष्णु जी जब चारों धामों पर बसें अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तो उत्तर में हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने धाम बद्रीनाथ में सबसे पहले पहुंचकर स्नान करते हैं फिर पच्छिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। इसके बाद भारत के पूरबी भाग में बसे धाम – पुरी में भोजन कर भारत के दक्षिण भाग के धाम – रामेश्वरम में विश्राम करते हैं। द्वापर युग के बाद से भगवान जगन्नाथ जी अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा जी के साथ पुरी धाम में ही विराजते हैं। यहां हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है।