तिलका माँझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में ‘तिलकपुर’ नामक गाँव में एक संथाल परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘सुंदरा मुर्मू’ था। तिलका माँझी को ‘जाबरा पहाड़िया’ के नाम से भी जाना जाता था। बचपन से ही तिलका माँझी जंगली सभ्यता की छाया में धनुष-बाण चलाते और जंगली जानवरों का शिकार करते। कसरत-कुश्ती करना बड़े-बड़े वृक्षों पर चढ़ना-उतरना, बीहड़ जंगलों, नदियों, भयानक जानवरों से छेड़खानी, घाटियों में घूमना आदि उनका रोजमर्रा का काम था। जंगली जीवन ने उन्हें निडर व वीर बना दिया था।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में तिलका माँझी का बहुत ही योगदान रहा है। तिलका माँझी एवं उनके द्वारा निर्मित सेना छापामार लड़ाई में काफी महारत हासिल कर रखा था जो अग्रेजों से लड़ाई के दौरान काफी काम आई। तिलका माँझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को ग़ुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेज़ों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी, जो 90 वर्ष बाद 1857 में स्वाधीनता संग्राम के रूप में पुनः फूट पड़ी थी। एक युद्द के दौरान तिलका माँझी को अंग्रेज़ी सेना ने घेर लिया एवं इस महान् विद्रोही देशभक्त को बन्दी बना लिया और उनपर अत्याचार एवं कार्यवाही की गई। 15 जुलाई सन 1785, भागलपुर में इस महान देश भक्त को एक वट वृक्ष में रस्से से बांधकर फ़ाँसी दे दी गई। क्रान्तिकारी तिलका माँझी की स्मृति में भागलपुर में कचहरी के निकट, उनकी एक मूर्ति स्थापित की गयी है। तिलका माँझी भारत माता के अमर सपूत के रूप में सदा याद किये जाते रहेंगे।